Tuesday, 30 September 2014

#35 - "सच्चाई अच्छी नहीं लगती"



ऐसे वक़्त ज़रूर आएंगे, जब ये कविता आपको ज़रूर सच लगेगी ।

खुदा का खौफ भी अब काम सा होने लगा...
गुस्सा इस जग में हद पार करने लगा...
दौर है ऐसा, जिसमे भलाई अच्छी नहीं लगती...
किसी को अब, सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

वो छोटी छोटी बात पर लड़ना मरना...
बोलो झूठ फसोगे तुम भी वरना...
ख़ुशी के लिए, झूठ की कोई हद नहीं लगती..
दुनिया में, अब सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

सच के पुल पर खड़ा, अब कौन होता है...
ईमानदार से ईमानदार, अब कौन होता है...
ख्यालो तक में ईमानदारी वाज़िब नहीं लगती..
वा-के-ही, अब सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

सिर्फ वाणी ही तुम, साथ ले कर जाओगे...
झूठ बोल के, ईश्वर को क्या मुख दिखाओगे...
ईश्वर के द्धार पर फिर, अपनी बुराई अच्छी नहीं लगती...
सच है "अनुज", किसीको अब सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

लेखक - अनुज सिंघल

Saturday, 26 July 2014

#34 - "मेरी शायरी"


कभी ज़िन्दगी के इम्तिहान में काम आई हो, बताना ज़रूर...
मुश्किल घड़ियों में राहत की सांस लायी हो, बताना ज़रूर...
हालांकि लिखने में कभी कारगर न रहा मगर...
ये शायरी किसी की याद लायी हो, बताना ज़रूर...

मन में क्रोध की भावना भी कभी जगाई होगी...
शायद इस शायरी ने आँखें भी भिगाई होगी...
पर कही मन में शायद एक प्यास उठी हो...
कुछ कर दिखाने की प्रेरणा भी, मेरी शायरी ने दिलाई होगी...

कभी बुज़ुर्गों की तरह सलाहें देती है...
कभी यादों की तरह, मुस्कान देती है...
मेरी शायरी मेरा सब कुछ है, मैं जानता हूँ...
ये शायरी ही मुझे, जीने की वजह देती है...

भूले बिसरे गीतों की तरह कभी सुनते रहना...
मेरी शायरी को तुम याद भी करते रहना...
इन्ही के ज़रिये, "सिंघल" गुज़ारिश करता है...
ऐ-दोस्त, मेरे जीने की दुआ तुम करते रहना...

लेखक - अनुज सिंघल 

Friday, 11 July 2014

#33 - "उनकी आँखें"



उम्मीद की जैसे बौछार नज़र आई...
मुझे उन आँखों में ख़ुशी नज़र आई...
मैं भी जीने की चाह हार चुका था मगर...
मुझे उनकी आँखों में ज़िन्दगी नज़र आई...

खिलखिलाना भी उनका आँखों में छिपाया गया...
रूठ जाने का इरादा भी नैनों में बसाया गया...
जुबां खामोश रहती है लेकिन सब कह देते है...
उनकी आँखों को ही "अनुज", जुबां बनाया गया...

जब आँखें है जुबां, क्यों न खामोश रहूँ...
उस कजरे के  नशे में, क्यों न मदहोश रहूँ...
बेहोश अगर इन्हीं की वजह से मानते हो मुझे...
एक कारण बताओ आखिर, क्यों न बेहोश रहूँ...

झुक कर उठे तो अदा बन जाती है...
ये आँखें प्यार का प्रयायवाची बन जाती है...
देख लेती हैं ये जिसे भी दो पल के लिए "अनुज"...
ये उसी के लिए, आशिकी का सबब बन जाती है...

ज़िद्द के बाद मिली कोई चीज़ के जैसे...
सच हुए किसी ख्वाब के जैसे...
नैन उनके कुछ ऐसे है मेरे लिए...
तितली को मिले फूल के जैसे...

लेखक - अनुज सिंघल 

Sunday, 22 June 2014

#32 - "प्यार"



कभी हसने की वजह बनता है...
कभी मुफ्लिस की दुआ बनता है...
दो रिश्तों को जोड़ता है प्यार...
एक अनोखा बंधन है प्यार...

कभी पल भर में ही बनता है...
कभी मिट कर, फिर न बनता है...
जीवन की नाज़ुक कड़ी है प्यार...
ज़िन्दगी में हर घडी है प्यार...

इसके रूप है विभिन्न, सारे न जान पाया...
पूछा दुनिया से, मगर, सारे न पूछ पाया...
कभी कुदरत तो कभी जानवर से प्यार...
इंसान को इंसान बनाता है ये प्यार...

जिन्हे नहीं है, ज़रा आज़मा के देखो...
तुम भी किसी से दिल लगा के देखो...
अनुज  के लिखने का कारण है प्यार...
सभी गम भुला देता है ये प्यार...

लेखक - अनुज सिंघल 

Monday, 26 May 2014

#31 - "I Thank GOD...!



For holding hand in tough times...
For always singing the good rhymes...
For hiding all my frauds...
I thank GOD...

When I thread through the meadows of life...
To dig the old and explore new ideas of life...
He keeps my thinking broad...
I thank GOD...

The time I write with all my heart...
And complete yet another part...
It's because of him people applaud..
I thank GOD...

When difficult times prevail...
When I move at speed of snail...
He saves me from all odd...
I thank GOD...

Taking this time, out today...
May be, now each day...
I join hands and nod...
I thank GOD...

~~AS~~


Thursday, 24 April 2014

#30 - "अधूरा सपना"



एक रोज़ बैठे-बैठे मुझे एक अधूरे सपने ने दस्तक दी... जो बातें उसने कही, इस कविता में रखता हूँ |

मुझे नहीं मालूम, क्या बात गलत हुई...
मुझसे इस दुनिया में, न जाने क्या गलती हुई...
आखिर क्यों रह गया मैं "अधूरा", बोला एक सपना...
आज मेरे संग बैठा था, एक अधूरा सपना...

जिस दिन मैं आया था, किसी ने कुछ करने की ठानी थी...
उसने मुझे अपनी ज़िन्दगी की, आखिरी मंज़िल मानी थी...
मान कर चलता था, इंसान भी मुझे अपना...
मेरे सामने रो पड़ा एक अधूरा सपना...

लोग दिन रात मेहनत, मेरी पूर्ती के लिए करते थे..
इन आँखों को आराम न दे, बस काम किया करते थे...
फिर क्यों सबने भुलाया मुझे और कहा, अपना ख्याल रखना...
पूछता है मुझसे, एक अधूरा सपना...

सच तो था के पैसे ने इच्छा शक्ति, कहीं दबा दी थी...
किसी गरीब को मैं आऊँ, भगवान ने भी सलाह दी थी...
मानी होती तो आज, मैं न रहता एक "अधूरा" सपना...
मुझे सोचने पर मज़बूर कर गया, एक "अधूरा" सपना...

लेखक-अनुज सिंघल

Tuesday, 8 April 2014

#29 - "याद सताती है"




जब भी अपने आप को देखना चाहता हूँ | आईने के सामने जब चला जाता हूँ || जाने क्यों मुझे तू ही नज़र आती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है || जब रात में चाँद मुझे तड़पाता है | बादलों के पीछे जब वो छिप जाता है || तब एक यादों कि लहर मुझे छू जाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है ||
जब अकेले बिस्तर पर बैठे मैं खो जाता हूँ | आँखों में नमी का मै एहसास पाता हूँ || जाने कौन से "अनुज" वो दिल के तार छेद जाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है || जब राहों पर मैं बेहिसाब निकलता हूँ | सूनी कोई राह नहीं , मैं सोचा ये करता  हूँ ||
मेरे साथ अपनी यादों को , वो हमेशा चलाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है || इस पूरी दुनिया में मैं गया हूँ जहां भी | किसी भी काम को किया है जब भी || तेरी याद मेरा जीना कठिन बनाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है ||
लेखक - अनुज सिंघल 

Tuesday, 25 March 2014

#28 - "भगत सिंह हो चला"



एक कविता जो मैंने "शहीदी दिवस" पर लिखी,  कुछ-कुछ, एक सिपाही की कहानी है... जय हिन्द...!!

अपनी माँ का लाड़ला, वो हमेशा था...
लेकिन मन से, वो देश प्रेम का मारा था...
मर कर भी देखो, वो अमर हो चला...
आज फिर एक सिपाही, भगत सिंह हो चला...

सीमा पर खड़ा है, मौसम को मात दिए...
है तैनात हर पल, मस्तिष्क को मात दिए...
वो बिना सोचे, जान की बाज़ी लगा चला...
आज फिर एक सिपाही, भगत सिंह हो चला...

न था मोह उसे, न माया की चिंता थी...
दिल से उसे, बस अपने वतन की चिंता थी...
बिना डरे वो मौत को, देखो ललकारने को चला...
आज फिर एक सिपाही, भगत सिंह हो चला...

फिर एक रोज़ जंग छिड़ी और तनाव हो गया...
जंग में वो सिपाही, "अनुज" घायल हो गया...
न रुके, न थके, वो बस लड़ता ही चला...
आज फिर एक सिपाही, भगत सिंह हो चला...

लोहे सी छाती पर खायी गोली और कमज़ोर पड़ गया...
मारे कितने ही दुश्मन, हाँ, वो उन पर भारी पड़ गया...
"इंक़लाब ज़िंदाबाद" के नारे लगाता, वो सिपाही शहीद हो चला...
आज फिर एक सिपाही, भगत सिंह हो चला...
भगत सिंह हो चला...

लेखक - अनुज सिंघल 


Sunday, 9 March 2014

#27 - "BETI BACHAO"


A poem on female foeticide....

Kuch paapon par lagaam kasna to seekh...
Tu kisi udaas vyakti ko khush karna to seekh...
Maa aur biwi hone ki dua to karta hai...
Arey, tu zara beti ka pita ban-na to seekh...

Kyun tu apni jaan ka ant, khud hi kar deta hai...
Bina janmi ek jaan ko, kyun bejaan kar deta hai...
Tere is paap ko duniya se tu kab tak chupa lega...
Kyun tu apni beti ko, sansaar me aane se rok deta hai...

Aakhir kyun! Bata kyun tu aisa neech kaam karta hai...
Kya zindagi me apni maa ka roop, tu kabhi bhoola karta hai...
Shayad bhool gaya tabhi tu bete ke laalach me bhatak hai raha...
Bata de zara! Bina beti ke kya koi jeevan hua karta hai...

Kyu tu itni akkad liye samaaj me rehta hai...
Kyu tu aakhir vehem ko seene se lagaaye rehta hai...
Sasti hai us nanhi pari ki kya jaan itni...
Jo tu guroor ko apne maathe se lagaaye rehta hai...

Kabhi maa, kabhi behen, kabhi biwi ban kar saath nibhaati hai...
Kabhi beti ban apni zimmedaariyaan nibhaati hai...
Sach kaha hai, prakriti ka nirmaan karti hai ladkiyaan...
Char deewaron ko ghar karne ki, ye rasmein nibhaati hai...

Aaj faila do is vaakya ko ke beti bachao...
Dekhna hai agar apne ko buzurg to beti bachao...
Jagao apne andar kuch insaaniyaat aaj "Anuj"...
Saare saath milkar awaaz uthao, aao, beti bachao...

aao, beti bachao...
~~AS~~

Thursday, 27 February 2014

#26 - "TUMHARA NAAM AAYEGA"


Dedicated to my love......

Har manzil mujhe hai jachti, jin par tumhara naam hai...
Vo sapne hai jachte, ankit jin par tumhara naam hai...
Daawa hai mera, meri dua me khuda bas ek insaan paayega...
Puchega koi mohobbat ki, dekhna, tumhara naam aayega...

Khwaishein nahi, bas meri ek khwaaish hi to hai...
Tumhare sang jiyu zindagi, meri ehtiyaaj to hai...
Mere dil ko agar khole koi, to bas ek naam paayega...
Meri dhadkano me bhi sanam, tumhara naam aayega...

Ye zindagi ka safar to sab kaat-te hai, maine jeena hai...
Tumhare saath chal kar, har khushi ka ras peena hai...
Mere is sacche prem ki kasme, saara zamaana khaayega...
Prem shabd bol ke dekho, tumhara naam aayega...

Marte damm tak saath nibhaane ka waada hai...
Har khushi dunga, "Anuj" ka tumse waada hai...
Zindagi me jab saansein rukhengi, tab bhi jahaan sun paayega...
Mai mar bhi jau, sun-na, tumhara naam aayega....
~~AS~~


Sunday, 16 February 2014

#25 - "FAASLE"



Kabhi choti nok-jhonk se badh jaate hai...
Kabhi maamuli takraar se badh jaate hai...
Zindagi me bahut kuch ehsaas dilaate hai faasle...
Kon apna, kon paraaya, dikhlaate hai faasle...

Kabhi chote se bade, yun hi ho jaate hai...
Kabhi pal bhar me hi, door ho jaate hai...
Zindagi ko bakhoobi jeena sikhaate hai faasle...
Pal pal par sochna sikhaate hai ye faasle..

Aaj logon ke paas samay ki kami hai...
Har ke mann me, apnepan ki kami hai...
Isliye kuch badh se gaye hai ye faasle...
Man hi man, sataate hai ye faasle...

Apno se door hone ka ehsaas dilaate hai...
Kabhi kareeb hokar bhi, doori ko avgat karaate hai...
Kabhi hote hai dil, to kabhi doori ke faasle...
Jaise bhi ho, bahut tadpaate hai ye faasle...
~~AS~~

Monday, 3 February 2014

#24 - "कोई ज़यादा ज़रूरी होगा"

दिन रात उसके ख्यालों में किसी का चेहरा होगा |
वो एक शख्स उसकी ज़िन्दगी में, मुझेसे ज़यादा ज़रूरी होगा ||

राहों पे चलते मैं अक्सर यूँ ही रुकता हूँ |
दुनिया का हाल-चाल पूछने का प्रयास करता हूँ ||
जवाब कुछ ऐसे दे जाती है दुनिया मुझे |
अंदर तक छू जाते है जो आकर मुझे ||

हर कि ज़िन्दगी में मुश्किलें है, कोई बताता नहीं |
दोस्तों में भी अब दुश्मनी है, कोई दिखलाता नहीं ||
इन अधूरे रिश्तों का कोई तो कारण होगा |
शायद उसके लिए कोई, मुझसे भी ज़यादा ज़रूरी होगा ||

क्यों मैं दुनिया के लिए इतना करता हूँ |
क्यों मैं खुद से पहले दूसरों को सोचता हूँ ||
मेरी फितरत नहीं जो मैं ये करना छोड़ता |
दूसरों कि ख़ुशी में खुश होना छोड़ता ||

ज़िन्दगी में जाने क्यों मैं इतना मांगता हूँ |
मैंने किया है तो, मैं उससे वापस मांगता हूँ ||
समझना होगा मुझे, जवाब न आने का कोई कारण होगा |
शायद उसके लिए, कोई मुझसे ज़यादा ज़रूरी होगा ||

किसी के लिए भावनाओं का, और अधिक महत्त्व होगा |
शायद उसकी ज़िन्दगी में, कोई मुझसे ज़यादा ज़रूरी होगा ||

लेखक-अनुज सिंघल  

Saturday, 11 January 2014

#23 - "PURAANI BAATEIN"

Kuch khatti, kuch meethi yaadein aa gayi...
Mere saamne bachpan ki kuch nishaaniyaan aa gayi..
Has has kar mai raat ko bas isi ke sapne leta raha...
Jabse mere khyaalon me ye "puraani baatein" aa gayi...

Aaj roz ki tarah jab mai kuch yaad kar raha tha...
Beete hue nagmo ki mai khoj kar raha tha...
In nagmo ki yaadon me, mai kho sa gaya...
Mai apni puraani baatein yaad kar raha tha...

Lagta hi nahi ke ye sab mere saath hua tha...
Kisi hindi chal-chitra ki tarah, meri zindagi me ghatit hua tha...
Un kuch logon ko mai aaj salaam karta hun...
Jinke saath ye jeevan itna saral hua tha...

Kuch baaton par hasi to kuch par gussa aa gaya...
Mujhe aaj apne bade hone ka matlab samajh aa gya...
Kaise mujhe apni hi baatein bachpana lagne lagi thi..
Anuj ki samajh me ab ye sansaar ka moh aa gaya...

Kon kehta hai ateet ko bhula dena chahiye...
Usey is sansaar se door kahin basa dena chahiye...
Arey yaadon par is duniya me kitne jeete hai...
Puraani Baaton ko kabhi jawaan bhi bana dena chahiye...
~~AS~~