Saturday, 26 July 2014

#34 - "मेरी शायरी"


कभी ज़िन्दगी के इम्तिहान में काम आई हो, बताना ज़रूर...
मुश्किल घड़ियों में राहत की सांस लायी हो, बताना ज़रूर...
हालांकि लिखने में कभी कारगर न रहा मगर...
ये शायरी किसी की याद लायी हो, बताना ज़रूर...

मन में क्रोध की भावना भी कभी जगाई होगी...
शायद इस शायरी ने आँखें भी भिगाई होगी...
पर कही मन में शायद एक प्यास उठी हो...
कुछ कर दिखाने की प्रेरणा भी, मेरी शायरी ने दिलाई होगी...

कभी बुज़ुर्गों की तरह सलाहें देती है...
कभी यादों की तरह, मुस्कान देती है...
मेरी शायरी मेरा सब कुछ है, मैं जानता हूँ...
ये शायरी ही मुझे, जीने की वजह देती है...

भूले बिसरे गीतों की तरह कभी सुनते रहना...
मेरी शायरी को तुम याद भी करते रहना...
इन्ही के ज़रिये, "सिंघल" गुज़ारिश करता है...
ऐ-दोस्त, मेरे जीने की दुआ तुम करते रहना...

लेखक - अनुज सिंघल 

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