Thursday, 24 April 2014

#30 - "अधूरा सपना"



एक रोज़ बैठे-बैठे मुझे एक अधूरे सपने ने दस्तक दी... जो बातें उसने कही, इस कविता में रखता हूँ |

मुझे नहीं मालूम, क्या बात गलत हुई...
मुझसे इस दुनिया में, न जाने क्या गलती हुई...
आखिर क्यों रह गया मैं "अधूरा", बोला एक सपना...
आज मेरे संग बैठा था, एक अधूरा सपना...

जिस दिन मैं आया था, किसी ने कुछ करने की ठानी थी...
उसने मुझे अपनी ज़िन्दगी की, आखिरी मंज़िल मानी थी...
मान कर चलता था, इंसान भी मुझे अपना...
मेरे सामने रो पड़ा एक अधूरा सपना...

लोग दिन रात मेहनत, मेरी पूर्ती के लिए करते थे..
इन आँखों को आराम न दे, बस काम किया करते थे...
फिर क्यों सबने भुलाया मुझे और कहा, अपना ख्याल रखना...
पूछता है मुझसे, एक अधूरा सपना...

सच तो था के पैसे ने इच्छा शक्ति, कहीं दबा दी थी...
किसी गरीब को मैं आऊँ, भगवान ने भी सलाह दी थी...
मानी होती तो आज, मैं न रहता एक "अधूरा" सपना...
मुझे सोचने पर मज़बूर कर गया, एक "अधूरा" सपना...

लेखक-अनुज सिंघल

Tuesday, 8 April 2014

#29 - "याद सताती है"




जब भी अपने आप को देखना चाहता हूँ | आईने के सामने जब चला जाता हूँ || जाने क्यों मुझे तू ही नज़र आती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है || जब रात में चाँद मुझे तड़पाता है | बादलों के पीछे जब वो छिप जाता है || तब एक यादों कि लहर मुझे छू जाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है ||
जब अकेले बिस्तर पर बैठे मैं खो जाता हूँ | आँखों में नमी का मै एहसास पाता हूँ || जाने कौन से "अनुज" वो दिल के तार छेद जाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है || जब राहों पर मैं बेहिसाब निकलता हूँ | सूनी कोई राह नहीं , मैं सोचा ये करता  हूँ ||
मेरे साथ अपनी यादों को , वो हमेशा चलाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है || इस पूरी दुनिया में मैं गया हूँ जहां भी | किसी भी काम को किया है जब भी || तेरी याद मेरा जीना कठिन बनाती है | एक याद तेरी तड़पाती है .. बस याद तेरी सताती है ||
लेखक - अनुज सिंघल