दिन गुज़रे मगर साँसों की बेताबी वही रही
रात को नींद न आने की रवानी वही रही
लाख समझाया खुद को, छोड़ दूं मगर
दिल की आकांक्षाओं से रूहानी वही रही
कभी पास बैठो, हम हाल-ए-दिल बताते हैं
रात को तो था, अब दिन में भी सताते हैं
मेरे हबीब हुए, छोड़ने का नाम नहीं लेते
मंज़िल के ख्याल हर पल मुझे रुलाते है
मन को चंचल करार दूँ, हल फिर नहीं होगा
सिलसिला सपनों का, खत्म फिर नहीं होगा
वफादारी कोई सीखे, "सिंघल" तेरे इरादों से
ये लाख तोड़ लें तुझे, तू हारा फिर नहीं होगा
रात को नींद न आने की रवानी वही रही
लाख समझाया खुद को, छोड़ दूं मगर
दिल की आकांक्षाओं से रूहानी वही रही
कभी पास बैठो, हम हाल-ए-दिल बताते हैं
रात को तो था, अब दिन में भी सताते हैं
मेरे हबीब हुए, छोड़ने का नाम नहीं लेते
मंज़िल के ख्याल हर पल मुझे रुलाते है
मन को चंचल करार दूँ, हल फिर नहीं होगा
सिलसिला सपनों का, खत्म फिर नहीं होगा
वफादारी कोई सीखे, "सिंघल" तेरे इरादों से
ये लाख तोड़ लें तुझे, तू हारा फिर नहीं होगा