Saturday, 10 November 2018

#41- "हाँ... मुझमें ही कुछ कमी रही होगी"

Ayushmann Khurana's line "वो सीख के गया है मोहब्बत मुझसे, अब जिससे करेगा, बेमिसाल करेगा" made me unfold the poet in me, once again. Writing after almost 2 years. Presenting:

"हाँ... मुझेमें ही कुछ कमी रही होगी"

वो मेरी नहीं रही, सच मुझे गवारा नहीं होता
क्या यह वही है, मुझे अंदाजा नहीं होता
उसके लिए दिल छोड़ो, जान लूटा रही होगी
हाँ... मुझेमें ही कुछ कमी रही होगी

वो लड़का बदनाम है, उसे मशहूर लगता है
उसका हर एक झूठ उसे मकबूल लगता है
कारण उसके, प्यार पे ऐतबार कर रही होगी
हाँ... मुझेमें ही कुछ कमी रही होगी

मुझे याद नहीं हक कभी उसने जताया हो
कभी हौले से अपना कोई डर मुझे बताया हो
सुनता है वो बेहतर, उसे सब बता रही होगी
हाँ... मुझेमें ही कुछ कमी रही होगी

हिफ़ाज़त, सब्र, ताक़ारा, मोहब्बत में जरूरी है
पहले नहीं, मगर अब कहती है ये लाजमी है
शुक्र है, उसकी तो ज़िन्दगी जन्नत कर रही होगी
हाँ... मुझेमें ही कुछ कमी रही होगी

मैं वो हरगिज़ न था जो उसने सोचा था
जाने क्यों फिर उसने सिर्फ मुझे चुना था
अब मिला है वो, हस्ती सवार रही होगी
हाँ... मुझेमें ही कुछ कमी रही होगी

इल्ज़ामात प्यार पर है, मुझे वो इसमें शामिल नहीं करतीं
मैं जुदा हुआ तो क्या, मेरी कविता से किनारा नहीं करती
पढ़ के इसे "सिंघल" आंसू पलकों से बहा रही होगी
वो सच कहती है, मुझमें ही कमी रही होगी

अनुज सिंघल

Saturday, 3 February 2018

#40 - "सपने"

दिन गुज़रे मगर साँसों की बेताबी वही रही
रात को नींद न आने की रवानी वही रही
लाख समझाया खुद को, छोड़ दूं मगर
दिल की आकांक्षाओं से रूहानी वही रही

कभी पास बैठो, हम हाल-ए-दिल बताते हैं
रात को तो था, अब दिन में भी सताते हैं
मेरे हबीब हुए, छोड़ने का नाम नहीं लेते
मंज़िल के ख्याल हर पल मुझे रुलाते है

मन को चंचल करार दूँ, हल फिर नहीं होगा
सिलसिला सपनों का, खत्म फिर नहीं होगा
वफादारी कोई सीखे, "सिंघल" तेरे इरादों से
ये लाख तोड़ लें तुझे, तू हारा फिर नहीं होगा