Tuesday, 30 September 2014

#35 - "सच्चाई अच्छी नहीं लगती"



ऐसे वक़्त ज़रूर आएंगे, जब ये कविता आपको ज़रूर सच लगेगी ।

खुदा का खौफ भी अब काम सा होने लगा...
गुस्सा इस जग में हद पार करने लगा...
दौर है ऐसा, जिसमे भलाई अच्छी नहीं लगती...
किसी को अब, सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

वो छोटी छोटी बात पर लड़ना मरना...
बोलो झूठ फसोगे तुम भी वरना...
ख़ुशी के लिए, झूठ की कोई हद नहीं लगती..
दुनिया में, अब सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

सच के पुल पर खड़ा, अब कौन होता है...
ईमानदार से ईमानदार, अब कौन होता है...
ख्यालो तक में ईमानदारी वाज़िब नहीं लगती..
वा-के-ही, अब सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

सिर्फ वाणी ही तुम, साथ ले कर जाओगे...
झूठ बोल के, ईश्वर को क्या मुख दिखाओगे...
ईश्वर के द्धार पर फिर, अपनी बुराई अच्छी नहीं लगती...
सच है "अनुज", किसीको अब सच्चाई अच्छी नहीं लगती...

लेखक - अनुज सिंघल